Apr 5, 2010
Ye Janta Badi Zaalim Hai!!!
सच पुचो तो मेरी आस्था इस प्रजातंत्र से बिलकुल हट गई है. इस दो टक्के की जनता की ये मजाल की जिसकी थाली में खाया, उसी थाली में छेद. ऐसे ऐसे बाहुबली जो जरा अपनी भ्रकुटी टेढ़ी कर ले तो इलाके हिल जाएँ. प्रशाशन पानी भरने लगे. जिस जेल में बंद हो वहां के अफसर उनकी बूट पालिश करने लगे. बड़े बड़े समाज सुधारक नेता परदे के पीछे जिनकी चम्पी करते हैं, इस चुनाव में ऐसे दुर्योधन को बिना भय खाए चारों खाने चित कर दिया. इसे कहते हैं घोर कलयुग. नेताओं का जो अपमान इस चुनाव में जनता ने किया है पहले कभी नहीं हुआ. कोई मामूली नेता नेतीयो का किया होता तो एक बारगी क्षम्य था लेकिन इस बार तो हर नेता प्रधानमंत्री बनने योग्य था. सुना है कुछ ने तो पेंटर से कह कर अपना नाम और प्रधानमंत्री भारत सरकार की नामे प्लेट भी तैयार करवा ली थी in नेताओं को raat में तो neend aati नहीं थी. so din में भी प्रधानमंत्री बनने के sapne देखने लगे थे. सब धुल में मिला दिया- किसने? जी हाँ इसी निकम्मी जनता ने. भविष्य के इन प्रधानमंत्रियों ने क्या कुछ नहीं किया. यहाँ तक जनता के जूते भी खाए. किसके लिए जनता के लिए. इस तपती गर्मी में सैकड़ों कुरते-पायजामे पसीने में डुबो डाले लाखों रुपयों का तेल हेलिकोप्तेरों में खर्च कर डाला, लाखों रूपये कार्यकर्तों की दारू पानी में फूंक डाले. जो कभी अपने बाप के पैर नहीं छुते उन्होंने दो दो कोडी के लोगों के पैर छु लिए. जो नेता दावा करते थे आसमान में छेद करने का वोह घर की छत को भी न छु सके. किसके कारण??? इसी कामिनी जनता के कारण. और जनता ने भी भरोसा किया तो किसपर एक जरा से छोकरे पर. इन घाघों को छोड़ उसकी मासूमियत पर. इनके भ्रस्टाचार वे बेईम्मानी को छोड़ उसकी इमानदारी पर. उसने सचे दिल से इन केवट वे शराबियों के बेर क्या खाए की उन्होंने उसे अपना दिल दे दिया. सच्चे दिल से किया हुआ कोई काम नाटक भले ही दिखे नाटक नहीं होता. इन बड़े बूढ़े घाघ नेताओं और कल के इस छोरे में सिर्फ इतना फर्क है की जिनकी औकाद एक संतरी बाने तक की नहीं है वोह प्रधानमंत्री बनने के लिए नाजायज छीनाझपटी कर रहें हैं. और जिस छोकरे के हाथ में वो मुकुट है वह इसे पहनने से इनकार कर रहा है. ना-ना मैं तो छोटा सा राहुल हु मनमोहन तो ये हैं. मुकुट तो इन्हें ही अच लगेगा. सेवा के लिए पद वे मुकुट की नहीं हर्दय की आवक्सयता होती है. कौण समझाए इन जड़ बूढी नेताओ को. अब पुराना रिवाज़ बदल कर देश के गरीब वे साधनहीन को गले लगाना ही होगा. सावधान. ये छोकरा आ गया है अन्यथा मान्यवर ये आपको किनारे लगा देगा. वाकई ये जनता बड़ी जालिम है.
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